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सांकेत्यं पारिहास्यं वा... ........  भागवतपुराण (6।2।14 )  

साक्षाच्च उभयाम्नानात्... ........  ब्रह्मसूत्र (1।4।23-24 )  

साक्षादिति च... ........  ब्रह्मसूत्रशांकरभाष्य (1।4।25 )  

सांख्यमतस्य वैदिकप्रत्यासन्नत्वात्...परिगृह्यन्ते... ........  ब्रह्मसूत्राणुभाष्य (2।1।12 )  

सांख्ययोगौ पृथग्बाला : ... ........  भगवद्गीता (5।4-5 )  

सांख्यसौगतचारवाकशंकरात् ... ........  न्यायसिद्धाञ्जन (3।68 )  

साच फलरूपा साधनरूपा च आस्ते. ........  सिद्धान्तमुक्तावलीविवृतिप्रकाश (1 )  

साच वृत्तिः चतुर्विधा संशयो...अ"ीकृता... ........  वेदान्तपरिभाषाप्रत्यक्षपरिच्छेद मणिप्रभाटीका ( )  

सात्विकमेकादशकं प्रवर्तते ........  सांख्यप्रवचनसूत्र (2।18 )  

साधनं भक्तिः मोक्षः साध्यः... ........  तत्त्वार्थदीपनिबन्ध प्रकाश (1।50-51 )  

साधवे शुचये ब्रूयात्... ........  भागवतपुराण (11।29।31 )  

साधवो हृदयं मह्यं... ........  भागवतपुराण (9।4।68 )  

साधूनां समयश्चापि... ........  मिताक्षरा (। )  

सापेक्षत्वाद् अनादित्वाद्... ........  कुसुमाञ्जली (1।4 )  

सामानि यो वेद स वेद सर्वम् ........  इतिहासोपनिषद् (9 )  

सारात्सारो हि भगवान्... ........  अग्निपुराण (1।4 )  

सालोक्यसार्ष्टिसामीप्य...मत्सेवनं जनाः... ........  भागवतपुराण (3।29।13 )  

साहित्यञ्च एकक्रियान्वयित्वम्... ........  समासवाद (द्वन्द्वप्रकरण )  

सिंच अंग...... ........  भागवतपुराण (10।26।35 )  

सिद्धन्तु यस्य गुणस्य भावाद्... ........  वार्तिक ( )  

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