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परस्परं भावयन्तः ........  भगवद्गीता (3।11 )  

परस्परविरोधे हि... ........  लौकिकन्यायसाहस्री (3 )  

परस्परानुप्रवेशात् तत्त्वानां...सर्वशः... ........  भागवतपुराण (11।22।5-6 )  

परस्य दृश्यते धर्मो ........  भागवतपुराण (3।26।49 )  

परस्य ब्रह्मणः शक्तिः तदेतदखिलं जगत्... ........  विष्णुपुराण (1।22।2।57 )  

परा अस्य शक्तिः... ........  श्वेताश्वतरोपनिषद् (6।8 )  

पराकृतनमद्बन्धं परब्रह्म ... ........  भगवद्गीतामधुसूदनी (14।27 )  

पराञ्चि खानि व्यतृणत् ... ........  कठोपनिषद् (2।1।1 )  

परात्तु तच्छ्रुतेः ........  ब्रह्मसूत्र (2।3।14 )  

परात्मनो विधिना न विभूत्यादिभजनप्रकारेण ........  भागवत सुबोधिनी (11।3।47 )  

पराभिध्यानात्तु तिरोहितं... ........  ब्रह्मसूत्र (3।2।5 )  

पराहृतान्तमनर्सः ........  भागवतपुराण (3।5।44 )  

परिणामः स्वभावतः ........  भागवतपुराण (2।5।22 )  

परिधीन्त्सम्मार्ष्टि ........  तैत्तिरीयसंहिता (2।6।9।1 )  

परिनिष्ठितोऽपि नैर्गुण्ये... ........  भागवतपुराण (2।1।9 )  

परिपूर्णशक्तिकं तु ब्रह्म न...सम्पादयितव्या... ........  ब्रह्मसूत्रशांकरभाष्य (2।1।24 )  

परिहृतस्तु ब्रह्मवादिना... ........  शांकरभाष्य (2।1।29 )  

परे अव्यये सर्व एकीभवन्ति... ........  मुण्डकोपनिषद् (3।2।7 )  

परो हि योगो... ........  भागवतपुराण (11।23।46 )  

परोक्षवादो वेदो अयं... ........  भागवतपुराण (11।3।44 )  

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