Nrusimha Chaudas !!

Nrusinhjiधर्माचरण के द्वारा हम जीवन के किसी अलौकिक उदेश्य की सिद्धि चाहते हैं. इसी तरह अर्थोपाजन के द्वारा हम अपने काम पुरुषार्थ की सिद्धि चाहते हैं. कोई काम पुरुषार्थ की सिद्धि क्यों चाहता है? प्रश्न का उत्तर दे पाना कठिन कार्य है. क्योंकि अधिकाधिक इतना भर कहा जा सकता है कि कामना की पूर्ति होने पर क्यों सुख मिलता है, का उत्तर यही मिलता है कि कामना की पूर्ति न होनी एक दुःख ही है. वास्तविकता यह है कि काम पुरुषार्थ की सिद्धि हमारा एहिक साध्य है. इसी तरह मुक्ति के द्वारा भी अन्य कुछ चाहा नहीं जाता. क्योंकि मोक्षकामना भी किसी साधन की कामना न होकर साध्य की कामना है. सामान्यतया एसा प्रतीत होता है कि अर्थ और काम पुरुषार्थ एहिक होते हैं, जबकि धर्म और मोक्ष पुरुषार्थ पारलौकिक या अलौकिक होते हैं. अर्थ और काम का सम्बन्ध देह के साथ अधिक जुड़ा हुआ लगता है.

(१) धर्म
वास्तविकता इस विषय में यह है कि ‘धर्म’ का सच्चा अर्थ कर्मकाण्ड नगीं है; और न वह किसी सामुदायिक आस्था के प्रति कोरी स्वीकृतिका ही कोई भाव है. धर्म एक जीवनप्रणाली है , जिसमें व्यवहार, विचार, भावना और कर्मकाण्ड आदि सभी बातों का समावेश हो जाता है.

(२) अर्थ
‘अर्थ’ यानि धन. ‘धन’ का अर्थ व्यवहार में चलते सिक्के या नोट ही केवल नहीं समझना चाहिए. धन या अर्थ के अन्तर्गत वे सारी बांते अ जाती हैं जिनके द्वारा हम लौकिक या अलोकिक सुख- सुविधा की सामग्री जुटा पाते हैं.

(३) काम
इसी तरह ‘काम’ का अर्थ भी केवल यौनवासना के सीमित अभिप्राय में प्रायः लिया जाता है. वास्तविकता जब कि यह है कि रुप,रस,गन्ध,स्पर्श या शब्द किसी भी विषय की नेत्र,जिव्हा, नाक,तव्चा या कान आदि के द्वारा प्राप्त होती अनुभुति में सुख की चाहना काम है. न केवल ज्ञानेन्द्रियों से विषयों की अनुभुति में ही, अपितु कर्मेन्द्रियों से सम्पन्न होती क्रिया को करने में भी, सुख की चाहना काम ही है.

(४) मोक्ष
हर व्यक्ति में इसी तरह मोक्षकामना भी किसी रुप में रहती ही है. चाहे कोई आस्तिक हो या नास्तिक, आत्मवादी हो या अनात्मवादी, ईश्वरवादी हो या अनीश्वरवादी.

Suvichar :

धनादिकी कामनापूर्तिकेलिये जो शास्त्रविहित श्रवण-कीर्तन-अर्चन आदि किये जावे हें
उनकुं कर्ममार्गीय समझने. उदरपोषणार्थ आजीविकाके उपार्जनके रूपमें जो श्रवण-
कीर्तन-अर्चन आदि किये जावें उनकुं तो खेतीबाड़ीकी तरह ‘लौकिक कर्म’ ही करनो
चहिये. मलप्रक्षालार्थ गंगाजलकुं प्रयोगमें लावे जेसो वो निषिद्धाचरण हे; ओर एसो
दुष्कृत्य करवेवालो पापभागी ही होवे हे.