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जहि शत्रुं... कामरूपं... ........  भगवद्गीता (3।43 )  

जाग्रत् स्वप्नः सुषुप्तञ्च ........  भागवतपुराण (11।13।27 )  

जातश्रद्धो मत्कथासु... ........  भागवतपुराण (11।21।27-34 )  

जातिः अत्र महासर्प... ........  महाभारत (3।177।26 )  

जातिः सामान्यजन्मनोः... ........  अमरकोश (3।3।68 )  

जातित्वोपाधित्वपरिभाषायाः...जातित्वे... ........  वेदान्तपरिभाषा प्रत्यक्षपरिच्छेद ( )  

जातिव्यक्तिविभागो अयं... ........  भागवतपुराण (6।15।8 )  

जातिशब्देन हि द्रव्यमपि... ........  पातञ्जलमहाभाष्य (1।2।58 )  

जात्युत्कर्षो युगे ज्ञेयः... ........  याज्ञवल्क्यस्मृति (1।5।95 )  

जायमानो वै ब्राह्मण: ........  तैत्तिरीयसंहिता (6।3।10 )  

जालार्करश्म्यवगतः ........  भागवतपुराण (3।11।5 )  

जाह्नवीतीरसम्भूतां... ........  मदनपारिजात (। )  

जिज्ञासितं सुसम्पन्नम्... ........  भागवतपुराण (1।4।3-4 )  

जित्वा बलाद् ...तद्धनम्... ........  भागवतपुराण (8।11।4 )  

जीव ईशो ... उपोद्, ........  सिद्धान्तलेशसंग्रहकृष्णालंकाराख्यव्याख्या (1।17 )  

जीवस्त्वाराग्र...तस्य तद्... ........  तत्त्वार्थदीपनिबन्ध (1।53-54 )  

जीवस्य...आविर्हिताः...तिरोहिताः... ........  भागवतपुराण (5।11।12 )  

जीवस्यानुस्मृती सती ........  भागवतपुराण (10।85।10 )  

ज्ञाज्ञौ द्वौ अजौ ईशानीशौ... ........  श्वेताश्वतरोपनिषद् (1।9 )  

ज्ञात्वा देवं मुच्यते सर्वपाशैः... ........  श्वेताश्वतरोपनिषद् (1।8 )  

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