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भक्तानाम् अनुग्रहार्थमेव भक्तसमानरूपं देहम् आस्थित: ........  भागवत सुबोधिनी (10।30।37 )  

भक्तिः अस्य भजनं तद् ... ........  गोपालपूर्वतापनीयोपनिषद् (1।3 )  

भक्तिः अस्य भजनं तद् इह अमुत्र... ........  गोपालपूर्वतापनीयोपनिषद् (1।3 )  

भक्तिः त्वयि उपयुज्येत... ........  भागवतपुराण (11।11।26 )  

भक्ति: चेत् स्वानुभावं न प्रकाशयते यदा ........  तत्त्वार्थदीपनिबन्ध (3।9।27-28 )  

भक्तिमार्गं प्रकटीकुर्वन् सामान्यतो... ........  भागवत सुबोधिनी (10।24।10-11 )  

भक्तिमार्गीयभजनप्रकारेषु... ........  भक्तिहंस ( )  

भक्तियोगः पुरैव उक्तः... ........  भागवतपुराण (11।11।19 )  

भक्तियोगो बहुविधो... ........  भागवतपुराण (3।29।7 )  

भक्तिस्तु विहिता अविहिता... ........  ब्रह्मसूत्राणुभाष्य (3।3।39 )  

भक्तेः च शुद्धतासिद्ध्यै प्रपञ्चाद्... ........  तत्त्वार्थदीपनिबन्ध (3।10।17-18 )  

भक्त्या अहम् एकया ग्राह्यः... ........  भागवतपुराण (11।14।21 )  

भक्त्या तुतोष भगवान् ........  भागवतपुराण (7।9।9 )  

भक्त्या त्वनन्यया शक्यः ........  भगवद्गीता (11।54 )  

भक्त्या मामभिजानाति ........  भगवद्गीता (18।55 )  

भक्त्या माम् अभिजानाति... ........  भगवद्गीता (18।55 )  

भक्त्या लभ्यस्तु अनन्यया... ........  भगवद्गीता (8।22 )  

भक्त्या सञ्जातया भक्त्या... ........  भागवतपुराण (11।3।31 )  

भक्त्यातु अनन्यया शक्य...प्रवेष्टुं च... ........  भगवद्गीता (11।54 )  

भक्त्याहमेकयाग्राह्यः ........  भागवतपुराण (11।14।21 )  

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