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स्नपनं त्वविलेप्यायाम्... ........  भागवतपुराण (11।27।14-46 )  

स्नात्वा पुण्ड्रं मृदा कुर्याद्... ........  धर्मप्रवृत्ति (। । )  

स्नेहाद वश्यो भवेद ध्रुवम ........  तत्त्वार्थदीपनिबन्ध (3।6।11 )  

स्फुटं चमत्कारितया... ........  साहित्यदर्पण (3।251 )  

स्फुटमधुरपदं हि कंसहन्तुः... ........  स्कन्दपुराण द्वितीयोत्कलखण्ड (11।113 )  

स्मर्तव्यः सततं विष्णुः... ........  पद्मपुराणोत्तरखण्ड (7।71।140 )  

स्मृतिप्रत्यक्षमैतिह्यम् ........  तैत्तिरीयारण्यक (1।2।1 )  

स्मृतिलम्भे सर्वग्रन्थिनां विप्रमोक्षः ........  छान्दोग्योपनिषद् (7।26।2 )  

स्याद् अस्ति...अवक्तव्यञ्च... ........  स्याद्वादमञ्जर्या ( )  

स्याद् माया शाम्बरी कृपा दम्भो बुद्धिः च... ........  अनेकार्थकोश ( )  

स्रुवं सम्मार्ष्टि ........  तैत्तिरीयब्राह्मण (3।3।1 )  

स्वकर्मणा जंगमत्वं... ........  ब्रह्मवैवर्तपुराणस्थद्वितीयखण्ड (24।23-24 )  

स्वतन्त्र: कर्ता... ........  पाणिनिसूत्र (1।4।54 )  

स्वधर्माचरणं शक्त्या विधर्मात् च निवर्तनम् ........  तत्त्वार्थदीपनिबन्ध प्रकाश (2।238 )  

स्वधाम्नो ब्रह्मणः साक्षाद्... ........  भागवतपुराण (12।6।41 )  

स्वपक्षदोषात् च... ........  ब्रह्मसूत्र (2।1।29 )  

स्वपादमूलं भजतः... ........  भागवतपुराण (11।2।42 )  

स्वप्नान्त उच्चावचम् ईयमान... ........  बृहदारण्यकोपनिषद् (4।3।13 )  

स्वप्रकाशसंविद्...स्वविषयकापरोक्षव्यवहारहेतु... ........  तत्वप्रदीपचित्सुखी (प्रथ.परि. )  

स्वप्रतिपन्नोपाधौ... ........  अद्वैतसिद्धि (1।प्रपं.मिथ्या. )  

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