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स भूतं स भव्यम्... ........  महानारायणोपनिषद् (24।1 )  

स मानसीन आत्माजनानाम्... ........  तैत्तिरीयारण्यक (3।11।1 )  

स मावतु ........  तैत्तिरीयसंहिता (3।4।5।1 )  

स यथा इमाः नद्यः...इत्येवं प्रोच्यते... ........  प्रश्नोपनिषद् (6।5 )  

स यथा सर्वासाम् अपां समुद्र एकायनम्... ........  बृहदारण्यकोपनिषद् (2।4।11 )  

स यथा सैन्धवघनो... ........  बृहदारण्यकोपनिषद् (4।5।13 )  

स यथोर्णनाभिस्तन्तुनोच्चरेत् ........  बृहदारण्यकोपनिषद् (2।1।20 )  

स यदा अस्माद् ... ........  विद्वन्मण्डन (पृ.191-193 )  

स यो अत एकैकम्...सर्वे एकं भवन्ति... ........  बृहदारण्यकोपनिषद् (1।4।7 )  

स वा एष महानज आत्मा... ........  बृहदारण्यकोपनिषद् (4।4।24 )  

स विश्वकृद् विश्वविद् ... ........  श्वेताश्वतरोपनिषद् (6।16 )  

स वै न देवासुरमर्त्यतिर्यक्... ........  भागवतपुराण (8।3।24 )  

स वै नैव रेमे स द्वितीयम् ऐच्छद् ........  बृहदारण्यकोपनिषद् (1।4।3 )  

स वै मनः कृष्णपदारविन्दयोः ........  भागवतपुराण (9।4।18-19 )  

स वै सर्वम् इदं जगत्... ........  महानारायणोपनिषद् (23।1 )  

स वै... अशेषविशेषमायानिषेध... ........  भागवतपुराण (6।4।28 )  

स समानः सन्नुभौ ........  बृहदारण्यकोपनिषद् (4।3।7 )  

स सर्वज्ञः सर्वविद् ... ........  मुण्डकोपनिषद् (1।1।9 )  

स सर्वधीवृत्त्यनुभूतसर्वः... ........  भागवतपुराण (2।1।39 )  

स सर्वनामा सच सर्वशक्तिः...अनिरुक्तात्मशक्तिः... ........  भागवतपुराण (6।4।28 )  

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