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सन्मूलमन्विच्छ सन्मूला...सत्प्रतिष्ठा... ........  छान्दोग्योपनिषद् (6।8।4 )  

सन्मूलाः सोम्येमाः प्रजाः ........  छान्दोग्योपनिषद् (6।8।4 )  

संन्यास: कर्मयोगः च... ........  भगवद्गीता (5।2 )  

सप्रकारकवृत्तिविषयत्वमेव दृश्यत्वम्...हेतुः... ........  अद्वैतसिद्धि (दृश्यत्वहेतूपपत्तौ )  

समं पश्यन् हि सर्वत्र...परां गतिम्... ........  भगवद्गीता (13।28 )  

सम: प्लुषिणा समो मशकेन... ........  बृहदारण्यकोपनिषद् (1।3।22 )  

समर्पणेन आत्मनो हि तदीयत्वं भवेद ध्रुवम् ........  बालबोध (18-19 )  

समवायत्वं नित्यसम्बन्धत्वम्... ........  न्यायसिद्धान्तमुक्तावली (11 )  

समाननामरूपत्वाच्च ........  ब्रह्मसूत्र (1।2।30 )  

समासेनैव कौन्तेय... ........  भगवद्गीता (18।50 )  

समाहितात्मनो ब्रह्मन् ........  भागवतपुराण (12।6।37 )  

समूहस्तु समाहारः... ........  पाणिनिसूत्र (2।2।29 )  

समो अहं सर्वभूतेषु... ........  भगवद्गीता (9।29-32 )  

समो नागेन समो मशकेन... ........  बृहदारण्यकोपनिषद् (1।3।22 )  

सम्प्रति अनेकान्तवादि...ब्रह्म एकं नाना च इति... ........  भामती (2।1।14 )  

सम्प्रति निर्विशेषप्रचुराणां... ........  ब्रह्मसूत्रशांकरभाष्यन्यायनिर्णयः (1।3।1 )  

सम्प्रयुक्तभिन्नार्थमात्रप्रतिपादकं बाह्यं ज्ञानम्... ........  अवतारवादावली अन्यख्यातिवाद ( )  

सम्बन्धिदर्शनं हि सदृशदर्शनवत्...क्लृप्तएव... ........  शास्त्रदीपिका (अनु.प्रभा.विमर्श )  

सम्भवामि आत्ममायया...एवम्... ........  भगवद्गीता (4।6-9 )  

सम्भावितं सर्वमेवाप्रमाणं ........  भागवत सुबोधिनी (3।26।30 )  

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