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तेजसस्तु विकुर्वाणाद् ........  भागवतपुराण (2।5।28 )  

तेजसा अपिबत् तीव्रम् आत्मप्रस्वापनं तमः... ........  भागवतपुराण (3।26।20 )  

तेजो वै घृतम् ........  तैत्तिरीयब्राह्मण (3।12।5।12 )  

तेजोऽभावः तम इति काणाद...परे... ........  मानमेयरहस्यश्लोकवार्तिक (21 )  

तेन देवा अयजन्त ........  ऋक्संहिता (10।90।7 )  

तेभ्यः समभवत् सूत्र ........  भागवतपुराण (11।24।6 )  

तेषां सततयुक्तानां... ........  भगवद्गीता (10।10-11 )  

तेषामेव अनुकम्पार्थम्... ........  भगवद्गीता (10।11 )  

तेषामेव एतां ब्रह्मविद्यां वदेत्... ........  मुण्डकोपनिषद् (3।2।10 )  

तेषाम् इच्छतां प्रायश्चित्तं... ........  आपस्तम्बधर्मसूत्र (1।1।6 )  

तैजसात्तु विकुर्वाणाद् बुद्धितत्त्वम्... ........  भागवतपुराण (3।26।29 )  

तैजसानीन्द्रियाण्येव ........  भागवतपुराण (3।26।31 )  

त्रयं वा इदं नामरूपं कर्म ........  बृहदारण्यकोपनिषद् (1।6।1 )  

त्रयी हि गतिः अस्य घटादेः... ........  न्यायमञ्जरी (आह्नि.8 )  

त्रयो वाव लोकाः... ........  बृहदारण्यकोपनिषद् (1।5।16 )  

त्रयो वेदस्य कर्तारो... ........  सर्वदर्शनसंग्रहस्थचार्वाकमतनिरूपण ( )  

त्रिगुणं पठ्यते यत्र मन्त्रब्राह्मणयोः ........  शौनकचरणव्यूहपरिशिष्ट (2 )  

त्रिपुण्ड्रं सुरविप्राणां... ........  धर्मप्रर्वृत्तिस्थशाकल्यवचन (। )  

त्रिभिरक्षरैर्गार्हपत्यमादधाति ........  तैत्तिरीयब्राह्मण (1।1।5।3 )  

त्रिविक्रमं कन्धरे तु... ........  पद्मपुराणोत्तरखण्ड (226-46।47 )  

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