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येन अश्रुतं श्रुतं...विज्ञातं भवति... ........  छान्दोग्योपनिषद् (6।1।3 )  

येन यस्यार्थसम्बन्धो ........  भट्टवार्तिक ( )  

येनाक्षरं समाम्नायम् ........  पाणिन्यष्टाध्यायिमंगलाचरण ( )  

येनाहं नामृता स्याम्... ........  बृहदारण्यकोपनिषद् (2।4।3 )  

येषां न प्रत्यक्षा, तेषामपि या देवतारूपा सा अस्तीति ........  सिद्धान्तमुक्तावलीविवृतिः (8 )  

येऽन्येऽरविन्दाक्ष... ........  भागवतपुराण (10।2।32 )  

येऽपि अन्यदेवताभक्ताः... ........  भगवद्गीता (9।23-25 )  

यैः शिष्यैः शश्वद् आराध्याः... ........  अगस्त्यसंहिता (। )  

यो अकामो निष्कामः... ........  बृहदारण्यकोपनिषद् (4।4।6 )  

यो अतः एकैकम् उपास्ते... ........  बृहदारण्यकोपनिषद् (1।4।7 )  

यो अनधीत्य द्विजो वेदम्... ........  मनुस्मृति (2।168 )  

यो अनुग्रहार्थं भजतां पादमूलम्... ........  भागवतपुराण (6।4।33 )  

यो अविद्यया युक् ... ........  भागवतपुराण (11।11।7 )  

यो अस्य उत्प्रेक्षक...हरिम्... ........  भागवतपुराण (10।84।50 )  

यो जगद् भूत्वा क्रीडति... ........  तत्त्वार्थदीपनिबन्ध (1।1 )  

यो जागरे बहिरनुक्षणधर्मिणो... ........  भागवतपुराण (11।13।32. 236 )  

यो ब्रह्मणं विदधाति पूर्वं... ........  गोपालपूर्वतापनीयोपनिषद् (1।5 )  

यो ब्रह्माणं विदधाति ........  श्वेताश्वतरोपनिषद् (6।18 )  

यो मद्भक्तः स मे प्रियः... ........  भगवद्गीता (12।14 )  

यो मन्त्रः स गुरुः साक्षाद्... ........  वामनकल्पे (। )  

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