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सहस्रशाखाध्यायी च ........  पद्मपुराण (3।226।3 )  

सहस्रशिरसं देवं... विद्यया... ........  भागवतपुराण (10।36।55 )  

सहस्रशीर्षा पुरुषः सहस्राक्षः सहस्रपात् ........  तैत्तिरीयारण्यक (3।13।2 )  

सहस्राणि च विंशतिः ... ........  छान्दोग्योपनिषद् (7।26।2 )  

सहि पूर्वेषामपि गुरुः... ........  पातञ्जलयोगसूत्र (1।26 )  

संहितो विश्वसामा ........  तैत्तिरीयसंहिता (3।4।7।3-4 )  

सा एवं कैवल्यनाथं तं प्राप्य... ........  भागवतपुराण (10।45।8-11 )  

सा च अम च ........  छान्दोग्योपनिषद् (1।6-7 )  

सा परा अनुरक्तिः ईश्वरे... ........  शाण्डिल्यभक्तिसूत्र (1।1।2। )  

सा वा एतस्य सन्द्रष्टुः शक्तिः...जगत्... ........  भागवतपुराण (3।5।25 )  

सा वा एषा सर्वदेवत्या ........  तैत्तिरीयसंहिता (3।4।3।2 )  

साकारब्रह्मवादैकस्थापको वेदपारगः... ........  सर्वोत्तमस्तोत्र (8 )  

साकारव्यापकत्वात् च ........  तत्त्वार्थदीपनिबन्ध (2।229 )  

सांकेत्यं पारिहास्यं वा... ........  भागवतपुराण (6।2।14 )  

साक्षाच्च उभयाम्नानात्... ........  ब्रह्मसूत्र (1।4।23-24 )  

साक्षादिति च... ........  ब्रह्मसूत्रशांकरभाष्य (1।4।25 )  

सांख्यमतस्य वैदिकप्रत्यासन्नत्वात्...परिगृह्यन्ते... ........  ब्रह्मसूत्राणुभाष्य (2।1।12 )  

सांख्ययोगौ पृथग्बाला : ... ........  भगवद्गीता (5।4-5 )  

सांख्यसौगतचारवाकशंकरात् ... ........  न्यायसिद्धाञ्जन (3।68 )  

साच फलरूपा साधनरूपा च आस्ते. ........  सिद्धान्तमुक्तावलीविवृतिप्रकाश (1 )  

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