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वषट्कारो वै गायत्री ........  तैत्तिरीयसंहिता (2।1।7।1 )  

वसन्ते ब्राह्मणमुपनयीत ........  आपस्तम्बधर्मसूत्र (1।1।20 )  

वसवस्त्वा परि गृह्णन्तु गायत्रेण छन्दसा ........  तैत्तिरीयसंहिता (1।1।9।17 )  

वसीयान् भवति ........  तैत्तिरीयसंहिता (3।1।7।4 )  

वस्तुतस्तु आनन्दमयएव... न पुरुषोत्तमाद् भिन्नतया ........  तत्त्वार्थदीपनिबन्ध प्रकाश (2।100-104 )  

वस्तुतस्तु विश्वामित्रस्यापि... ........  धर्मप्रदीपे जातितत्त्वप्रकाश पृ.67-116 ( )  

वस्तुतस्तु शब्दाजन्यवृत्तिविषयत्वमेव दृश्यत्वम्... ........  अद्वैतसिद्धि (दृश्यत्वहेतूपपत्ति )  

वस्तुतस्तु सर्वस्य भगवदीयत्वेऽपि...रमणाथ ........  सिद्धान्तरहस्य (2 )  

वस्तुनः तत्समसत्ताको...विवेकः... ........  सिद्धान्तलेशसंग्रह (1।3 )  

वस्तुनो मृदुकाठिन्यम् ........  भागवतपुराण (2।10।23 )  

वाक्यान्वयात्... ........  ब्रह्मसूत्र (1।4।19 )  

वागालम्बनमात्रं नामैवं केवलं...वस्तु अस्ति... ........  छान्दोग्योपनिषच्छाङ्करभाष्य (6।1।4 )  

वाङ्मनसि ........  ब्रह्मसूत्र (4।2।1 )  

वाचा विरूपनित्यया... ........  ऋक्संहिता (8।75।6 )  

वाचारम्भणं विकारो नामधेयम् ........  छान्दोग्योपनिषद् (6।1।5 )  

वाच्यत्वं वेद्यतां च ... ........  तत्वमुक्ताकलापः (3।3 )  

वायुर्वै क्षेपिष्ठा देवता ........  तैत्तिरीयसंहिता (2।1।1।1 )  

वायू रूपेण रहितः...तमः... ........  मानमेयरहस्यश्लोकवार्तिक (21 )  

वार्ता विचित्रा शालीन... ........  भागवतपुराण (7।12।16 )  

वार्ता-सञ्चय-शालीन-शिलोञ्छ... ........  भागवतपुराण (3। 12।42 )  

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