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सुदुर्दर्शम् इदं रूपं दृष्टवान् असि... ........  भगवद्गीता (11।52 )  

सुपां सुलुग् ........  पाणिनिसूत्र (7।1।39 )  

सुप्तस्य विषयालोक... ........  भागवतपुराण (11।10।3 )  

सुवर्गांय वा एतानि ........  तैत्तिरीयसंहिता (6।6।1।1 )  

सुषिरं विवरं बिलम्... ........  कोश ( )  

सूत त्वं पूजितो अस्मामिः... ........  अग्निपुराण (1।3 )  

सूतो वैदहकः चैव... ........  मनुस्मृति (10।24-26 )  

सूत्रकारोऽपि...आश्रयन्ति ........  ब्रह्मसूत्रशांकरभाष्य (2।1।14 )  

सूर्याय जुष्टं निर्वपामि... ........  तैत्तिरीयसंहिता (1।1।4 )  

सूर्येतु विद्यया त्रय्या... ........  भागवतपुराण (11।11।43-45 )  

सूर्यो अग्निः ब्राह्मणाः गावो... ........  भागवतपुराण (11।11।42 )  

सृष्टिन्यासं स्थितिन्यासं संहृतिन्यासमेव च ........  विष्वक्सेनसंहिता (16।25-29 )  

सेयं देवता ऐक्षत हन्त अहम्...करवाणीति... ........  छान्दोग्योपनिषद् (6।3।2 )  

सेयं भगवतो माया... ........  भागवतपुराण (3।7।9-10 )  

सेवकानां यथा लोके व्यवहारः प्रसिद्ध्यति ........  सिद्धान्तरहस्य (8-9 )  

सेवायां वा कथायां वा ........  भक्तिवर्धिनी (9 )  

सेवायां विशेषम् आह... ........  भागवत सुबोधिनी (10।87।27 )  

सैषा अविद्या जगत् सर्वम् ... ........  नृसिंहोत्तरतापनीयोपनिषद् (9 )  

सैषा आनन्दस्य मीमांसा भवति... ........  तैत्तिरीयोपनिषद् (2।8 )  

सैषा वटबीज...माया चाविद्या चस्वयमेव भवति ........  नृसिंहोत्तरतापनीयोपनिषद् (9 )  

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