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विनोदाय चैतन्यम्...शिवं वा करोषि... ........  देवीभुजञ्गप्रयातस्तोत्र (4 )  

विप्रं कृतागसमपि... ........  भागवतपुराण (10।65।41-42 )  

विप्राणां नैव धार्यं स्यात्... ........  पद्मपुराणोत्तरखण्ड (225।18-20 )  

विप्रो अधीत्य आप्नुयात् प्रज्ञां... ........  भागवतपुराण (12।12।64 )  

विभावेन आहृतो यो अर्थस्तु... ........  भरतनाट्यशास्त्र (7।1-2 )  

विरचिताभयं वृष्णिधुर्य ते ........  भागवतपुराण (10।28।5 )  

विरुद्धधर्माश्रयत्वात् च भगवति... ........  भागवत सुबोधिनी (1।19।16 )  

विरुद्धसर्वधर्माणाम् आश्रयम्... ........  तत्त्वार्थदीपनिबन्ध (1।71 )  

विरुद्धैः अविरुद्धैः वा भावैः... ........  दशरूपक (4।34 )  

विरोधेतु अनपेक्षं स्यात् ........  जैमिनिसूत्र (1।3।3 )  

विरोधेतु अनपेक्षं स्याद् ... ........  जैमिनिसूत्र (1।3।3 )  

विलज्जमानया यस्य स्थातुम् ... ........  भागवतपुराण (2।5।13 )  

विवर्तवादस्य हि पूर्वभूमिः...विवर्तवादः... ........  संक्षेपशारीरक (2।61 )  

विवाहस्तु समन्त्रकः... ........  याज्ञवल्क्यस्मृति (2।13 )  

विविक्तदेशे च सुखासनस्थः ........  कैवल्योपनिषद् (5 )  

विशेषस्तु विकुर्वाणाद् ........  भागवतपुराण (2।5।29 )  

विशो वै मरुतः... ........  शतपथब्राह्मण (3।9।1।14-17 )  

विश्लिष्टशक्तिः बहुधेव भाति ........  भागवतपुराण (11।12।20 )  

विश्वं वै ब्रह्म तन्मात्रम् ........  भागवतपुराण (3।10।12 )  

विश्वजिता यजेत ........  शतपथब्राह्मण (10।2।1।16 )  

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