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स्वमन्त्रो नोपदेष्टव्यो... ........  नारदसंहिता (11।43-47 )  

स्वयं विहृत्य... ........  बृहदारण्यकोपनिषद् (4।3।9 )  

स्वयं समुत्तीर्य... ........  भागवतपुराण (10।2।31 )  

स्वयञ्ज्योतिर्भवति ........  बृहदारण्यकोपनिषद् (4।3।9 )  

स्वरतः कालतः स्थानात् ........  पाणिनीयशिक्षा (10 )  

स्वरूपेण अवतारेण लिंगेन... ........  पुष्टिप्रवाहमर्यादा (13 )  

स्वरेण सन्धेयेद् योगम्... ........  ब्रह्मबिन्दूपनिषद् (7 )  

स्वर्गकामो यजेत ........  आपस्तम्बश्रौतसूत्र (10।2।1 )  

स्वर्गकामो यजेत... ........  ताण्ड्यब्राह्मण (16।15।5 )  

स्वर्णपात्रं देवद्रव्यम् आसीत्... ........  आचार्यगृहवार्ता (3 )  

स्वस्य अयमेव धर्मो हि ........  चतुश्लोकी (श्लोकी )  

स्वस्यासाधारणत्वेन पितृ.. ........  तैत्तिरीयारण्यकभाष्य (2।10 )  

स्वस्वरूपबलेन स्वप्रपाणं पुष्टिः... ........  अणुभाष्य (3।3।29 )  

स्वाध्यायजपहोमादि... ........  धर्मप्रवृत्ति (। )  

स्वाध्यायस्य तथात्वेन... ........  ब्रह्मसूत्र (3।3।3 )  

स्वाध्यायोऽध्येतव्यः ........  तैत्तिरीयारण्यक (2।15 )  

स्वानुयोगिनिष्ठविशेष्यता... ........  गादाधरि (अनु.अव.प्रक.पृ.1557 )  

स्वाभाविकी ज्ञानबलक्रिया च ........  श्वेताश्वतरोपनिषद् (6।8 )  

स्वामिनीनां हि बहिःप्राकट्यमेव... ........  भागवतसुबोधिनीटिप्पणि (10।26।0।7 )  

स्वाराज्यतुष्ट उपशान्तम् ... ........  भागवतपुराण (7।15।45 )  

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