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स्वार्थबोधे समाप्तानाम् ........  तन्त्रवार्तिक (1।4।28 )  

स्वाश्रमाचारसहित-ब्रह्मानुभवसहित-माहात्म्यज्ञानपूर्वक: ........  तत्त्वार्थदीपनिबन्ध (2।196 )  

स्वाश्रयत्वेन...मिथ्यात्वम् ........  तत्त्वप्रदीपिकाचित्सुखी (1।7 )  

स्वाहाकार-नमस्कारौ... ........  महाभारत (12।60।36 )  

स्वीयान् भक्तान् प्रदर्शयेत्... ........  साधनदीपिका (108 )  

स्वे महिम्नि प्रतिष्ठितः ........  छान्दोग्योपनिषद् (7।26।24 )  

स्वे-स्वे अधिकारे या निष्ठा स गुणः परिकीर्तित: ........  भागवतपुराण (11।21।2-16 )  

हत्वा गर्भम् अविज्ञातम्... ........  मनुस्मृति (11।87 )  

हन्त ते कथयिष्यामि... ........  भागवतपुराण (11।29।8 )  

हरयो अयं वै...अनन्तानि च... ........  बृहदारण्यकोपनिषद् (2।5।19 )  

हरिनामाक्षरमुखं... ........  स्कन्दपुराण काशीखण्ड (21।69 )  

हरिमूर्तिः सदा ध्येया ........  निरोधलक्षण (17 )  

हरेः मूर्तिं कृत्वा भजेत्... ........  तत्त्वार्थदीपनिबन्ध प्रकाश (2।228 )  

हविष्कृदेहि ........  मैत्रायणी संहिता (1।4।10।43 )  

हंसाय एकं बहुरूपम्...स वेद वेदम्... ........  भागवतपुराण (11।12।23 )  

हस्तादयस्तु स्थितेनैवम् ........  ब्रह्मसूत्र (2।4।6 )  

हिरण्यपर्ण प्रदिवस्ते अर्थम् ........  शाबरभाष्य (1।3।9।30 )  

हृतरूपं तु तमसा वायौ ........  भागवतपुराण (11।3।14 )  

हृदा तुष्टेषु मनसो... ........  ऋक्संहिता (8।2।24 )  

हृदि अन्तर्ज्योतिः पुरुषः... ........  बृहदारण्यकोपनिषद् (1।3।7 )  

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