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सर्वकर्माणि मनसा ........  भगवद्गीता (5।13 )  

सर्वकाम: सर्वगन्ध: सर्वरस : ... ........  छान्दोग्योपनिषद् (3।14।4 )  

सर्वकारणानां पुरुषादीनामपि ... अक्षरमपि भगवतः ........  भागवत सुबोधिनी (3।11।41 )  

सर्वगुह्यतमं भूयः... ........  भगवद्गीता (18।64-65 )  

सर्वचित्तचैत्तानाम् आत्मसंवेदनम्... ........  न्यायबिन्दु (1।10 )  

सर्वज्ञः सर्वेश्वरो जगतः...घटरुचकादीनाम्... ........  ब्रह्मसूत्रशांकरभाष्य (2।1।1 )  

सर्वतः पाणिपादं तत्... ........  श्वेताश्वतरोपनिषद् (3।16 )  

सर्वत्र विभाषा गोः ........  पाणिनिसूत्र (6।1।122 )  

सर्वत्र संसर्गमात्रम् असदेव...अवगम्यते... ........  शास्त्रदीपिका (विज्ञा.वा.खण्डने )  

सर्वत्र हि... ........  ब्रह्मसूत्र (3।2।4 )  

सर्वथा चेद् हरिकृपा न... ........  तत्त्वार्थदीपनिबन्ध (2।226 )  

सर्वदा सर्वभावेन भजनीयो व्रजाधिपः ........  चतुश्लोकी (1 )  

सर्वदेवमयो हरि : ... ........  भागवतपुराण (11।23।28 )  

सर्वधर्माणाम् उपपत्ति: उक्ता... ........  ब्रह्मसूत्रशांकरभाष्यवार्तिक (2।1।37 )  

सर्वधर्मान् परित्यज्य... ........  भगवद्गीता (18।66 )  

सर्वधर्मोपपत्ते: च... ........  ब्रह्मसूत्र (2।1।37 )  

सर्वभूतसुहृच्छान्तो...विषज्जेत वै पुनः... ........  भागवतपुराण (11।7।12 )  

सर्वभूतेषु येन एकं भावम् अव्ययम् ईक्षत ........  भगवद्गीता (18।20 )  

सर्वरूपभगवत्सम्बन्धात्... ........  भागवत सुबोधिनी (2।5।18 )  

सर्वरूपेषु मिथः सर्वधर्माणाम् उपसंहारः ........  ब्रह्मसूत्राणुभाष्य (3।3।7 )  

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