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हविष्कृदेहि ........  मैत्रायणी संहिता (1।4।10।43 )  

हंसाय एकं बहुरूपम्...स वेद वेदम्... ........  भागवतपुराण (11।12।23 )  

हस्तादयस्तु स्थितेनैवम् ........  ब्रह्मसूत्र (2।4।6 )  

हिरण्यपर्ण प्रदिवस्ते अर्थम् ........  शाबरभाष्य (1।3।9।30 )  

हृतरूपं तु तमसा वायौ ........  भागवतपुराण (11।3।14 )  

हृदा तुष्टेषु मनसो... ........  ऋक्संहिता (8।2।24 )  

हृदि अन्तर्ज्योतिः पुरुषः... ........  बृहदारण्यकोपनिषद् (1।3।7 )  

हृदिस्थोऽप्यतिदूरस्थः... ........  भागवतपुराण (10।86।47 )  

हेमात्मना यथा अभेदः...भिदा... ........  ब्रह्मसूत्रभास्करभाष्य (1।1।4 )  

हेयत्वावचनात् च... ........  ब्रह्मसूत्र (1।1।7 )  

ह्रीः धीः भीः इति एतत् सर्वं... ........  बृहदारण्यकोपनिषद् (1।5।3 )  

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