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तत्कर्म सङ्कल्पविकल्पकं मनो... ........  भागवतपुराण (11।2।38 )  

तत्कारितत्वाद् अहेतुः ... ........  गौतमन्यायसूत्र (4।1।21 )  

तत्तत् सात्त्विकमेवैषाम् ........  भागवतपुराण (11।13।5 )  

तत्तु समन्वयाद् ... ........  ब्रह्मसूत्र (1।1।3 )  

तत्तेजोऽसृजत ........  छान्दोग्योपनिषद् (6।2।3 )  

तत्धमर्व्यपदेशात् ... ........  ब्रह्मसूत्र (1।2।18 )  

तत्पूरुषनिषेवया... ........  भागवतपुराण (6।1।16 )  

तत्प्रधानत्वाद् ... ........  ब्रह्मसूत्र (3।2।14 )  

तत्र अशक्तौ तन्त्रोक्तप्रकारेणापि कृष्णमेव भजेत् ........  भागवत सुबोधिनी (11।3।47 )  

तत्र अष्टादशसाहस्रं श्रीभागवतम् इष्यते... ........  भागवतपुराण (12।13।9 )  

तत्र च अन्यत्र च प्राप्तौ परिसंख्या इति गीयते ........  तन्त्रवार्तिक (1।2।4 )  

तत्र च स्थितम् ........  तत्त्वार्थदीपनिबन्ध (2।228 )  

तत्र चैतन्यरूपज्ञाने संशयाकार... ........  वेदान्तपरिभाषाप्रत्यक्षपरिच्छेद मणिप्रभाटीका ( )  

तत्र त्रिवर्गकामेन क्रियमाणः... ........  भक्तिहंस ( )  

तत्र भवान् किं देवदत्तवद्... ........  भागवतपुराण (6।9।35 )  

तत्र मूर्तेः भगवत्त्वं त्रेधा निरूपयति ........  तत्त्वार्थदीपनिबन्ध प्रकाश (2।229 )  

तत्र शृण्वन्ति अमीलितदृशो... ........  भागवतपुराण (10।18।14 )  

तत्र सत्वं निर्मलत्वात् ........  भगवद्गीता (14।6 )  

तत्र सदानन्दो भगवान्... ........  भागवत सुबोधिनी (2।9।1 )  

तत्र साधनता सर्वथा... ........  तत्त्वार्थदीपनिबन्ध (2।55 )  

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