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यत् पत्यपत्यसुहृदाम् अनुवृत्तिः अंग ........  भागवतपुराण (10।26।32-33 )  

यत् प्रमाणैः...न ईश्वरभाषितम्... ........  ब्रह्मसूत्रभास्करभाष्य (1।1।4 )  

यत् स्वाध्यायम् अधीयीत ........  तैत्तिरीयारण्यक (2।10 )  

यत्करोत्येकरात्रेण ........  मनुस्मृतिः (11।178 )  

यत्तत् प्रधानं त्रिगुणं... ........  कूर्मपुराण (1।2।104 )  

यत्तत्त्रिगुणमव्यक्तम् ........  भागवतपुराण (3।26।10 )  

यत्तद् लिंगं भगवतो... ........  भागवतपुराण (12।6।39 )  

यत्तु कृत्स्नवदेकस्मिन् कार्ये...अल्पञ्च तत्तामसम्... ........  भगवद्गीता (18।22 )  

यत्पीतं चारूणं च ........  मधुविद्या ( )  

यत्पुरोडाश...पर्यग्नि करोती ........  तैत्तिरीयब्राह्मण (3।2।8।5 )  

यत्र अधिकृत्य गायत्री... ........  मत्स्यपुराण (53।20 )  

यत्र आरोप्यम् असंनिकृष्टं...अनिर्वचनीयलौहित्योत्पत्तिः... ........  वेदान्तपरिभाषा प्रत्यक्षपरिच्छेद ( )  

यत्र इदानीं महासर्प... ........  महाभारत (3।177।28 )  

यत्र उषितं, विशालाक्षि,... ........  महाभारत (1|27|13 )  

यत्र एकाग्रता तत्र अविशेषात्... ........  ब्रह्मसूत्र (4।1।11 )  

यत्र गृह्यते तयोः...स्वापेक्ष्यवैशसाद् इति... ........  अद्वैतरत्न (5 )  

यत्र यत्र परीवादो... ........  जयसंहिता (16।323-325 )  

यत्र येन यतो यस्य ........  भागवतपुराण (10।85।4 )  

यत्र योगेश्वरः कृष्णो... ........  भगवद्गीता (18।78 )  

यत्रतु अस्य सर्वम्...कं पश्येद्... ........  बृहदारण्यकोपनिषद् (4।5।15 )  

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