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अनेकबाहूदरवक्त्रनेत्रम् ... ........  भगवद्गीता (11|16 )  

अनेकभूत-भौतिक-देव-तिर्यङ्... ........  ब्रह्मसूत्राणुभाष्य (1|1|2 )  

अनेन जीवेन आत्मानुप्रविश्य ........  छान्दोग्योपनिषद् (6|3|2 )  

अन्त: प्रविष्टं कर्तारम् ... ........  चित्त्युपनिषद् (11|3 )  

अन्तःकरणविशुद्धिं भक्तिं ...चरणयुगम्... ........  सुवर्णमालास्तुति (14 )  

अन्तःकरणशुद्धाः ये... ........  स्कन्दपुराणान्तर्गतचतुर्थखण्ड (35|141 )  

अन्तरा विज्ञान...निरूपिता.... ........  ब्रह्मसूत्राणुभाष्य (2|3|17 )  

अन्तरा विज्ञानमनसी... ........  ब्रह्मसूत्र (2|3|15-17 )  

अन्तरीक्षं दीक्षा द्यौर्दीक्षा ........  तैत्तिरीयब्राह्मण (3|7|7|5 )  

अन्तर्गृहगताः काश्चिद् गोप्यो... ........  भागवतपुराण (10|26|11 )  

अन्तर्याम्यधिदेवादिषु तद्धर्मव्यपदेशात्... ........  ब्रह्मसूत्र (1|2|18 )  

अन्तस्तद्धर्मा... ........  ब्रह्मसूत्र (1।1।19 )  

अन्धकारो स्त्रियां ध्वान्तो... ........  अमरकोश (1|8|3 )  

अन्धतमः प्रविशन्ति ये... ........  केनोपनिषद् (9-11 )  

अन्नदाता भयत्राता... ........  ब्रह्मवैवर्तपुराण (1|10|153 )  

अन्नम् अशितं त्रेधा भवति... ........  छान्दोग्योपनिषद् (6|5|1 )  

अन्यत्रमना अभूवं न... ........  बृहदारण्यकोपनिषद् (1|5|3 )  

अन्यथात्वञ्च व्यधिकरणप्रकारकत्वरूपम्... ........  न्यायशिखामणिप्रत्यक्षखण्ड ( )  

अन्यथैवाग्निसंयोगाद् ........  वाक्पदीय (2|418 )  

अन्यमूर्तिभजने श्रीकृष्णस्य मूलभूतत्वात् ........  तत्त्वार्थदीपनिबन्ध टिप्पणी (2|229 )  

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