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युक्तं च सन्ति सर्वत्र...शक्तयो मे दुरत्यया... ........  भागवतपुराण (11।21।4-5 )  

युक्तं भगैः स्वैः इतरत्र च... ........  भागवतपुराण (2।9।16 )  

युक्तयः सन्ति सर्वत्र ........  भागवतपुराण (11।22।4-5 )  

युक्त्यगोचरम्... ........  तत्त्वार्थदीपनिबन्ध (1।71 )  

यूनोः एकतरस्मिन् गतवति... ........  साहित्यदर्पण (3।209 )  

ये कण्ठलग्नतुलसी... ........  पद्मपुराणोत्तरखण्ड (225।70 )  

ये केचिद यथाकथाञ्चिद भवन्तु नाम ........  भागवत सुबोधिनी (3।32।22 )  

ये तु अक्षरम् अनिर्देश्यम् ... ........  भगवद्गीता (12।3 )  

ये ते वेदाः शरीरस्थाः... ........  महाभारत (5।180।24 )  

ये धातुशब्दाः यत्र... ........  पत्रावलम्बन (4 )  

ये मधुच्छन्दसो ज्येष्ठाः... ........  भागवतपुराण (9।16।33 )  

ये यथा मां प्रपद्यन्ते तान् तथैव भजामि अहम् ........  भगवद्गीता (4।11 )  

येतु अक्षरम् अनिर्देश्यम्... ........  भगवद्गीता (12।3-5 )  

येतु सर्वाणि कर्माणि... ........  भगवद्गीता (12।6-8 )  

येन अञ्जसा पुमान् सिद्ध्येत्... ........  भागवतपुराण (11।29।1 )  

येन अश्रुतं श्रुतं...विज्ञातं भवति... ........  छान्दोग्योपनिषद् (6।1।3 )  

येन यस्यार्थसम्बन्धो ........  भट्टवार्तिक ( )  

येनाक्षरं समाम्नायम् ........  पाणिन्यष्टाध्यायिमंगलाचरण ( )  

येनाहं नामृता स्याम्... ........  बृहदारण्यकोपनिषद् (2।4।3 )  

येषां न प्रत्यक्षा, तेषामपि या देवतारूपा सा अस्तीति ........  सिद्धान्तमुक्तावलीविवृतिः (8 )  

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