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वेदोऽखिलो धर्ममूलम् ........  मनुस्मृतिः (2।6 )  

वै ब्रह्मतन्मात्रं संस्थितं ........  भागवतपुराण (3।10।12 )  

वैकारिकाद् विकुर्वाणाद्...कामसम्भवः... ........  भागवतपुराण (3।26।27 )  

वैतानं प्रक्षिपेदप्सु ........  भविष्यपुराण ( )  

वैदिकी तान्त्रिकी दीक्षा... ........  भागवतपुराण (11।11।37 )  

वैधर्म्याच्च न स्वप्नादिवद् ... ........  ब्रह्मसूत्र (2।2।29 )  

वैयात्यादेव नृणां पदे स्थिता... ........  मार्कण्डेयपुराण (। । )  

वैराग्यं सांख्ययोगौ च... ........  तत्त्वार्थदीपनिबन्ध (1।45-46 )  

वैवाहिको विधिः स्त्रीणां... ........  मनुस्मृति (2।67 )  

वैशारदी सा अतिविशुद्धबुद्धिः... ........  भागवतपुराण (11।10।13 )  

वैश्येन वैश्यः शूद्रेन शूद्रः... ........  बृहदारण्यकोपनिषद् (1।4।15 )  

वैषम्यनैर्द्यृण्ये न सापेक्षत्वात् ........  ब्रह्मसूत्र (2।1।34 )  

वैष्णवानां यथा शम्भुः... ........  भागवतपुराण (12।13।16 )  

वैष्णवानां हरेः अर्चा... ........  ब्रह्मवैवर्तपुराण (1।24।21-23 )  

वैष्णवीकरणं कुर्यात् पूर्वं... मूर्तिमन्त्रेण साधकः ........  विष्वक्सेनसंहिता (16।22 )  

व्यक्तेरभेदः तुल्यत्वं... ........  किरणावली (16 )  

व्यतिरेको गन्धवद्... ........  ब्रह्मसूत्र (2।3।26 )  

व्यवहारः संनिपातो ........  भागवतपुराण (11।2।56 )  

व्यवहाराभिप्रायेणतु स्याद्...ब्रह्मणः कथयति... ........  ब्रह्मसूत्रशांकरभाष्य (2।1।14 )  

व्याप्तेश्च समञ्जसं... ........  ब्रह्मसूत्र (3।3।9-10 )  

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