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तेषामेव अनुकम्पार्थम्... ........  भगवद्गीता (10।11 )  

तेषामेव एतां ब्रह्मविद्यां वदेत्... ........  मुण्डकोपनिषद् (3।2।10 )  

तेषाम् इच्छतां प्रायश्चित्तं... ........  आपस्तम्बधर्मसूत्र (1।1।6 )  

तैजसात्तु विकुर्वाणाद् बुद्धितत्त्वम्... ........  भागवतपुराण (3।26।29 )  

तैजसानीन्द्रियाण्येव ........  भागवतपुराण (3।26।31 )  

त्रयं वा इदं नामरूपं कर्म ........  बृहदारण्यकोपनिषद् (1।6।1 )  

त्रयी हि गतिः अस्य घटादेः... ........  न्यायमञ्जरी (आह्नि.8 )  

त्रयो वाव लोकाः... ........  बृहदारण्यकोपनिषद् (1।5।16 )  

त्रयो वेदस्य कर्तारो... ........  सर्वदर्शनसंग्रहस्थचार्वाकमतनिरूपण ( )  

त्रिगुणं पठ्यते यत्र मन्त्रब्राह्मणयोः ........  शौनकचरणव्यूहपरिशिष्ट (2 )  

त्रिपुण्ड्रं सुरविप्राणां... ........  धर्मप्रर्वृत्तिस्थशाकल्यवचन (। )  

त्रिभिरक्षरैर्गार्हपत्यमादधाति ........  तैत्तिरीयब्राह्मण (1।1।5।3 )  

त्रिविक्रमं कन्धरे तु... ........  पद्मपुराणोत्तरखण्ड (226-46।47 )  

त्रिवृतायूपं परिवीय आग्नेयं... ........  आपस्तम्बश्रौतसूत्र (12।18।12 )  

त्रिष्वपि भगवान् अनुस्यूतः... ........  तत्त्वार्थदीपनिबन्ध प्रकाश (66 )  

त्रीणि आत्मने अकुरुतेति... ........  बृहदारण्यकोपनिषद् (1।5।3 )  

त्रीणि रूपाणि...इत्येव सत्यम्... ........  छान्दोग्योपनिषद् (6।4।1 )  

त्रीण्येव प्रमाणानि ........  भागवत सुबोधिनी (3।26।30 )  

त्र्यात्मकत्वात्तु भूयस्त्वाद्... ........  ब्रह्मसूत्र (3।1।2 )  

त्वं च रुद्र महाबाहो मोहशास्त्राणि.. ........  वराहपुराण (70।36 )  

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