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त्वं तु सर्वं परित्यज्य... ........  भागवतपुराण (11।7।6 )  

त्वं ब्रह्म परमं साक्षाद्...मोहितानि ते... ........  भागवतपुराण (11।16।1-4 )  

त्वं भावयोगपरिभावितहृत्सरोज ........  भागवतपुराण (3।9।11 )  

त्वं हि नः पिता... ........  प्रश्नोपनिषद् (6।8 )  

त्वन्तु सर्वं परित्यज्य...विचरस्व गाम्... ........  भागवतपुराण (11।7।6 )  

त्वन्मायया विरचिता... ........  भागवतपुराण (11।7।16 )  

त्वमात्मनात्मानमवेह्यमोघदृक् ........  भागवतपुराण (1।5।21 )  

त्वया उपभुक्तस्रग्गन्ध... ........  भागवतपुराण (11।6।46 )  

त्वयि उद्धव... ........  भागवतपुराण (11।19।7 )  

त्वयि ते इमे ततो विविधनामगुणैः ........  भागवतपुराण (10।84।31 )  

त्वष्टारं यजति ........  तैत्तिरीयसंहिता (2।6।10।3 )  

दक्षिणाग्नौ पत्नयाः ........  आपस्तम्बश्रौतसूत्र (8।10।10 )  

दक्षिणार्थं यो विप्रो... ........  पराशरस्मृति (12।35 )  

दण्डाकारं ललाटे स्यात्... ........  तत्त्वार्थदीपनिबन्ध प्रकाश (2।244 )  

दत्त्वा आज्ञां च कृपावलोकनपटुः... ........  भागवत सुबोधिनी (1।1।1।5 )  

दध्यङ् आथर्वणो अश्विभ्याम् उवाच... ........  बृहदारण्यकोपनिषद् (2।5।19 )  

दयां कुरु प्रपन्नाय तव अस्िम... ........  गरुडपुराण (220।11 )  

दर्पस्तु भगवदीयतया स्वल्पो मृग्यएव... ........  भागवत सुबोधिनी (10।60।29 )  

दर्शयामास लोकं स्वम् ........  भागवतपुराण (10।28।14 )  

दर्शितो अयं मया आचारः...यदात्मने... ........  भागवतपुराण (11।21।4-11 )  

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