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परिनिष्ठितोऽपि नैर्गुण्ये... ........  भागवतपुराण (2।1।9 )  

परिपूर्णशक्तिकं तु ब्रह्म न...सम्पादयितव्या... ........  ब्रह्मसूत्रशांकरभाष्य (2।1।24 )  

परिहृतस्तु ब्रह्मवादिना... ........  शांकरभाष्य (2।1।29 )  

परे अव्यये सर्व एकीभवन्ति... ........  मुण्डकोपनिषद् (3।2।7 )  

परो हि योगो... ........  भागवतपुराण (11।23।46 )  

परोक्षवादो वेदो अयं... ........  भागवतपुराण (11।3।44 )  

पर्वताग्रे नदीतीरे... ........  ब्रह्माण्डपुराण (। । )  

पवमानः सुवर्जनः पवित्रेण विचर्षणिः ........  तैत्तिरीयब्राह्मण (1।4।8।1 )  

पवित्रं चरणं नेमि... ........  पद्मपुराणोत्तरखण्ड (224।63-64 )  

पवित्रं ते विततं ब्रह्मणस्पते... ........  ऋक्संहिता (9।83।1-तैत्तिरीयारण्यक )  

पश्य मे पार्थ रूपाणि ........  भगवद्गीता (11।5-8 )  

पश्यन् मदात्मकं विश्वम्...ममाहम्... ........  भागवतपुराण (11।7।12 )  

पश्यामि देवान्...दिव्यान्... ........  भगवद्गीता (11।15 )  

पातालम् एतस्य पादमूलम् ... ........  भागवतपुराण (2।1।26 )  

पादो अस्य विश्वा भूतानि... ........  ऋक्संहिता (10।90।3 )  

पादो अस्य विश्वा भूतानि... ........  पुरुषसूक्त (3 )  

पापं नाशयते कृत्स्नमपि... ........  बृहज्जाबालोपनिषद् (4।32 )  

पारमार्थिकापारमार्थिकत्वाभ्याम्...पर्यवसानं... ........  अद्वैतसिद्धि ( )  

पाषण्डमतस्वीकारम् अकृत्वा... ........  तत्त्वार्थदीपनिबन्ध प्रकाश (2।215 )  

पिता अहम् अस्य जगतः ... ........  भगवद्गीता (9।17-18 )  

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