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प्रकृति पुरुषं चेव ........  भगवद्गीता (13।19 )  

प्रकृतिः पुरुषश्चोभौ ........  तत्त्वार्थदीपनिबन्ध (2।98 )  

प्रकृति: च प्रतिज्ञादृष्टान्तानुपरोधाद् ... ........  ब्रह्मसूत्र (1।4।23 )  

प्रकृतिप्रत्ययौ सहार्थं ब्रूतः ः ... ........  पातञ्जलमहाभाष्य (1।2।64 )  

प्रकृतिर्हि अस्य उपादानम्...अहम्... ........  भागवतपुराण (11।24।19 )  

प्रकृतिर्ह्यस्योपादानम् ........  भागवतपुराण (11।24।19 )  

प्रकृतिश्च प्रतिज्ञादृष्टान्तानुपरोधाद्... ........  ब्रह्मसूत्र (1।4।23 )  

प्रकृतिश्च...योनिश्च हि गीयते... ........  ब्रह्मसूत्र (1।4।23-27 )  

प्रकृतेः गुणसाम्यस्य...उपलक्षितः... ........  भागवतपुराण (3।26।17 )  

प्रकृते: क्रियमाणानि... ........  भगवद्गीता (3।7 )  

प्रकृतेर्गुणसाम्यस्य ........  भागवतपुराण (3।26।17 )  

प्रकृतेऽपि यद्रूपोपासनाप्रकरण ........  ब्रह्मसूत्राणुभाष्य (3।3।3 )  

प्रकृतैतावत्त्वं हि प्रतिषेधति... ........  ब्रह्मसूत्र (3।2।22 )  

प्रजापतिः अकामयत प्रजायेयेमति... ........  तैत्तिरीयसंहिता (7।1।1 )  

प्रजापतिः अकामयत... ........  तैत्तिरीयसंहिता (3।1।1।1 )  

प्रजापतिः प्रजाः असृजत... ........  तैत्तिरीयब्राह्मण (2।2।7।1 )  

प्रजापतिमेव देवतां यजन्ते... ........  शतपथब्राह्मण (12।1।3।21 )  

प्रजापतिर्वरुणायाश्वमनयनयद् ........  तैत्तिरीयसंहिता (2।3।12।1 )  

प्रजापते रक्ष्यश्व यत्तत्परापत्तदश्वोऽभवद् ........  तैत्तिरीयसंहिता (5।3।12।1 )  

प्रजापतेरेव सायुज्यमुपैति ........  माध्यन्दिनशतपथब्राह्मण (12।1।3।2 )  

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