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प्रजायेय ........  तैत्तिरीयोपनिषद् (2।6।1 )  

प्रज्ञया शरीरं समारुह्य... ........  कौषितक्युपनिषद् (3।6 )  

प्रज्ञोपलब्धिः चित्संविद् ........  अमरकोश (1।5।1 )  

प्रणतभारविटपाः मधुधाराः ... ........  भागवतपुराण (10।32।9 )  

प्रणम्य हेतुम् ईश्वरम्... ........  वैशेषिकसूत्रभाष्यमंगलाचरण ( )  

प्रतिग्रहं मन्यमानः... ........  भागवतपुराण (11।17।41 )  

प्रतिज्ञादृष्टान्तानुपरोधाधिकरण ........  ब्रह्मसूत्र (1।4।23 )  

प्रतितिष्ठन्तीह वै त ........  ताण्ड्यब्राह्मण (23।2।4 )  

प्रतिबुद्धइव स्वप्नाद् ... ........  भागवतपुराण (10।11।13 )  

प्रतिमुखस्य यथा मुखश्रीः... ........  भागवतपुराण (7।9।11 )  

प्रतिवेशं पचेयुः तस्याश्नीयाद् ........  तैत्तिरीयब्राह्मण (1।6।7।1 )  

प्रत्यक्षा सा न सर्वेषाम् ........  सिद्धान्तमुक्तावली (8 )  

प्रत्यक्षादृष्टविषये पदार्थाः श्रुतिबोधिताः ........  भागवत सुबोधिनी (2।9।32 )  

प्रत्यक्षेणानुमित्या वा ........  ऐतरेयब्राह्मणभाष्य (1।1।1 )  

प्रत्यभिज्ञायते कर्ता यः ........  शास्त्रदीपिका (1।1।5 )  

प्रत्युद्गमप्रश्रयणाभिवादनम् ... ........  भागवतपुराण (4।3।22 )  

प्रथमाविभक्त्यन्तघटामदिपद्... ........  व्युत्पत्तिवादीयकारकप्रकरण प्रथमाविवेचन ( )  

प्रदर्शितेन प्रकारेण...उपपद्यन्ते... ........  ब्रह्मसूत्रशांकरभाष्य (2।1।37 )  

प्रदेशादिति चेद् न अन्तर्भावाद्... ........  ब्रह्मसूत्र (2।3।53 )  

प्रधानकारणवादः कैश्चिद्... ........  ब्रह्मसूत्रशांकरभाष्य (2।2।3 )  

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