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भक्त्या मामभिजानाति ........  भगवद्गीता (18।55 )  

भक्त्या माम् अभिजानाति... ........  भगवद्गीता (18।55 )  

भक्त्या लभ्यस्तु अनन्यया... ........  भगवद्गीता (8।22 )  

भक्त्या सञ्जातया भक्त्या... ........  भागवतपुराण (11।3।31 )  

भक्त्यातु अनन्यया शक्य...प्रवेष्टुं च... ........  भगवद्गीता (11।54 )  

भक्त्याहमेकयाग्राह्यः ........  भागवतपुराण (11।14।21 )  

भगवतः कृष्णस्य च...इति अर्थः... ........  गीतामधुसूदनी (14।27 )  

भगवतः सर्वतः ........  भागवत सुबोधिनी (3।5।37 )  

भगवति उत्तमश्लोके भवतीभिः ........  भागवतपुराण (10।44।25 )  

भगवते कृष्णाय ........  ब्रह्मसम्बन्धमन्त्रः ( )  

भगवत्परहृषीकैः निरुपाधिक... ........  नारदपञ्चरात्र (। )  

भगवत्सेवायामपि क्लिष्टं न समर्पयेत्... ........  तत्त्वार्थदीपनिबन्ध प्रकाश (2।236 )  

भगवदभिप्राय वर्णने के वयं वराकाः... ........  गीतामधुसूदनी (18।66 )  

भगवदर्थे भगवान् न सेव्यतइति... ........  तत्त्वार्थदीपनिबन्ध प्रकाश (1।17 )  

भगवद्भजनपरेषु अर्थार्थ्यार्त... ........  गीताशांकरभाष्य (18।54 )  

भगवद्भावस्य रसात्मकत्वेन... ........  ब्रह्मसूत्राणुभाष्य (3।4।49 )  

भगवद्वंशजाताः ये ते वै... ........  नारदसंहिता (11।24-30 )  

भगवन् भारताख्यानं... ........  मार्कण्डेयपुराण (1।2 )  

भगवानपि ताः रात्रीः ... ........  भागवतपुराण (10।26।1 )  

भगवानेव हि मलम्... ........  पुष्टिप्रवाहमर्यादा (17 )  

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