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भूतं ह भव्ये आहितं... ........  अथर्वसंहिता (17।1।19 )  

भूतादिपादव्यपदेशोपपत्तेश्च एवम्... ........  ब्रह्मसूत्र (1।1।25 )  

भूतानां छिद्रदातृत्वम् ........  भागवतपुराण (3।26।34 )  

भूतानि विष्णुः भुवनानि विष्णुः वनानि ........  विष्णुपुराण (2।12।28 )  

भूतेषु घोषरूपेण ........  भागवतपुराण (11।21।37 )  

भूमिः आपो अनलो वायुः...अष्टधा... ........  भगवद्गीता (7।4 )  

भूमिर्भूम्ना ........  तैत्तिरीयसंहिता (1।5।4।1 )  

भूयश्च अन्ते ... ........  श्वेताश्वतरोपनिषद् (1।10 )  

भूरिति व्याहरन् ........  तैत्तिरीयब्राह्मण (2।2।4।2 )  

भृगुर्वै वारुणिः...एतत्प्रोवाच ........  तैत्तिरीयोपनिषद् (3।1 )  

भेदः पारमार्थिकः इति शास्त्रं पुरस्कृत्य ........  भागवत सुबोधिनी (3।32।37 )  

भेदन्तु प्रतिषेधामो...निरुक्तिः लोकतुष्टये... ........  अद्वैतपरिभाषा (13।8-9 )  

भेदाभेदयोः हि सर्वप्रमाणसिद्धत्वाद्... ........  ब्रह्मसूत्रभास्करभाष्य (2।1।13 )  

भौतिकानां विकारेण ........  भागवतपुराण (3।26।42 )  

मत्कर्मकृद् मत्परमो... ........  भगवद्गीता (11।55 )  

मत्तः स्मृतिः ज्ञानम् ... ........  भगवद्गीता (15।15 )  

मत्तएव पृथग्विधाः... ........  भगवद्गीता (10।5 )  

मत्प्रियार्थं शुभार्थं च... ........  स्कन्दपुराण द्वितीयवैष्णवखण्ड (3।15 )  

मत्सेवया प्रतीतं च... ........  भागवतपुराण (9।4।67 )  

मत्सेवायान्तु निर्गुणः... ........  भागवतपुराण (11।25।27 )  

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